IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319-1775 Online 2320-7876

“सामाजिक न्याय और दलित साहित्य: एक आलोचनात्मक अध्ययन”

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श्री घुटे माधव रमेश

Abstract

भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा केवल कानूनी या राजनीतिक संदर्भ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रवृत्ति है। यह अवधारणा समाज के सभी वर्गों और समुदायों के लिए समानता, स्वतंत्रता और सम्मान की सुनिश्चितता के लिए कार्यरत है। सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य भेदभाव और असमानता को समाप्त करना है, ताकि सभी व्यक्तियों को अपने अधिकारों का समान रूप से अनुभव हो सके। इस दिशा में, दलित साहित्य एक महत्वपूर्ण आंदोलन के रूप में उभरा है, जो भारतीय समाज में दलित समुदाय की आवाज़ को मुखर करने का कार्य करता है। दलित साहित्य, जिसे अनेकों लेखक, कवि, और विचारक ने अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है, मुख्य रूप से उन मुद्दों पर केंद्रित है जो दलित समुदाय के अधिकारों, उनके संघर्षों, और उनके अनुभवों को दर्शाते हैं। यह साहित्य केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन का एक माध्यम भी है। दलित साहित्य ने न केवल दलित समुदाय की समस्याओं को उजागर किया है, बल्कि इसे एक सशक्त आंदोलन के रूप में भी स्थापित किया है, जिसमें दलितों के अनुभवों और संघर्षों को सामने लाया गया है।

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