IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319-1775 Online 2320-7876

बुद्ध धर्म की वैचारिक पृष्ठभूमि और हिंदी साहित्य

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कृष्ण चंद्र पांडेय, सहायक आचार्य ,बौद्ध अध्ययन केंद्र

Abstract

आज से लगभग ढ़ाई हज़ार वर्ष पूर्व बौद्ध धर्म का शुभारम्भ सारनाथ में भगवान बुद्ध के धम्मचक्कपवत्तन के साथ हुआ था. वस्तुतः धर्म रुपी चक्के का रूपक बहुकोणीय जीवन के सभी पक्षों को समेटता हुआ परिवर्तन के सत्य का एक अनूठा बोध प्रस्तुत करता है. अस्थिरता का सत्य और सत्य की अस्थिरता पहेली के रूप में मनुष्य की बुद्धि को सदा से चुनौती देते आ रहे हैं और बुद्ध ने इसकी चुनौती को स्वीकार किया. यह करते हुए बौद्ध मत जीव जगत में मनुष्य को असाधारण महत्ता और गरिमा के साथ प्रतिष्ठित करता है. मनुष्य की इस प्रतिष्ठा का बीज रूप राजा शुद्धोधन के घर जन्म लिए बालक सिद्धार्थ का पैंतीस वर्ष की आयु में निरंजना नदी के तट पर बुद्ध होने की कथा में निहित है. इस रूप में भगवान बुद्ध का जीवन स्वयं में एक विलक्षण काव्य है जिसमें मनुष्य की अभीप्सा, उसकी पर्येषणा, मूल्य-बोध और सत्य सभी अपनी चरम निष्पत्ति के साथ आकार पाते दिखाई पड़ते हैं. इसके बाद की कथा काव्य के उस पक्ष को प्रस्तुत करती है जिसके सम्बन्ध में प्राचीन काल के सुप्रसिद्ध कला समीक्षक भट्टतौत की उक्ति है- 'नानृषिः कविरित्युक्तम् ऋषिस्तु किल दर्शनात्'.

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