Volume 14 | Issue 5
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आज के वैश्वीकरण-प्रधान युग में, जहाँ उपभोक्ता व्यवहार तेजी से अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों की ओर अग्रसर हो रहा है, भारत जैसे विकासशील देश के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बन गया है। इस परिप्रेक्ष्य में, स्वदेशी उत्पादों का प्रचार-प्रसार केवल एक सांस्कृतिक या राष्ट्रीयतावादी पहल नहीं है, बल्कि यह एक आर्थिक रणनीति भी है जो घरेलू उद्योगों को सशक्त बनाने, स्थानीय रोजगार सृजित करने, और आयात पर निर्भरता को घटाने की दिशा में कार्य करता है। यह शोध पत्र भारत में स्वदेशी उत्पादों के प्रचार के विभिन्न आयामों का विश्लेषण करता है और उनका देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता में योगदान प्रस्तुत करता है। विशेष रूप से, यह पेपर यह समझने का प्रयास करता है कि किस प्रकार सरकारी योजनाएँ (जैसे ‘वोकल फॉर लोकल’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’) और डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म, जैसे ई-कॉमर्स वेबसाइटें, सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग, स्वदेशी उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सहायता कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, अध्ययन में यह भी पाया गया है कि MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) क्षेत्र, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, स्वदेशी उत्पाद निर्माण का सबसे बड़ा स्त्रोत है। जब इन उत्पादों को बाजार और ब्रांडिंग का समर्थन मिलता है, तो यह क्षेत्र न केवल GDP में महत्वपूर्ण योगदान देता है बल्कि व्यापक स्तर पर रोजगार भी उत्पन्न करता है। हालाँकि, स्वदेशी उत्पादों के प्रचार में कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जैसे गुणवत्ता मानकों की असंगति, प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य निर्धारण, उपभोक्ता विश्वास की कमी, और सीमित पूँजी व तकनीक। शोध में इन समस्याओं के संभावित समाधान भी प्रस्तुत किए गए हैं, जैसे तकनीकी नवाचार, गुणवत्ता प्रमाणीकरण, वित्तीय सहायता और जागरूकता अभियान। समग्र रूप से, यह शोध दर्शाता है कि स्वदेशी उत्पादों को यदि व्यवस्थित रूप से बढ़ावा दिया जाए, तो वे भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को सशक्त रूप से आगे बढ़ा सकते हैं। यह प्रयास न केवल देश की अर्थव्यवस्था को अधिक स्थिर और सुदृढ़ बनाएगा, बल्कि भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रतिस्पर्धी भागीदार के रूप में भी स्थापित करेगा।