IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319 1775 Online 2320-7876

हिन्दी साहित्य की रचनाओं में प्रतापनारायण मिश्र की सांस्कृतिक जागरूकता एक अध्ययन

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दर्शना कुमारी , डॉ नवनीता भाटिया

Abstract

संस्कृति' शब्द एक ओर तो बड़ा ही सरल लगता है तथा दूसरी ओर यह बड़ा ही गूढ़ है। सामान्य अर्थ में देखें तो यह शब्द संस्कृत भाषा के सम् उपसर्ग तथा कृ धातु के संयोग से बना हुआ परिमार्जन तथा परिष्करण की क्रिया का द्योतक है। "संस्कृत के एक विद्वान के अनुसार 'संस्कृति' की व्युत्पत्ति इस प्रकार है सम् उपसर्ग 'कृ' धातु से भूषण अर्थ में 'सुट्' का आगम करके 'क्तिन' प्रत्यय करने से 'संस्कृति' शब्द बनता है। इस व्युत्पत्ति के आधार पर 'संस्कृति' का अर्थ होता है- भूषणायुक्त सम्यक् कृति या चेष्टा। इस वाक्य में 'सम्यक' शब्द ध्यान देने योग्य है। सामान्य प्राणी की क्रियाएँ अपने मूल रूप में शरीर की प्रकृति के अनुसार स्वच्छंद होती हैं, उनके स्थान, समय, संपर्क आदि ध्यान नहीं रखा जाता। परन्तु मनुष्य इस प्रकार की स्वच्छंदता को उचित नहीं समझता, वह अपने कार्य-व्यापारों को वही रूप देना चाहता है जो उचित और सम्यक् हो। उक्त व्युत्पत्ति के अनुसार 'संस्कृति' के अर्थ का संबंध ऐसी ही सम्यक् कृति या चेष्टा से जोड़ा गया है।"

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