Volume 13 | Issue 4
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भारत एक विशाल देश है विसमें अनेक िनपद, राज्य तथा नगर समावहत हैं। िनपद का अथथ है- मनुष्यों का आश्रय स्थान। प्राचीन समय में िनपद शब्द का प्रयोग उसी अथथ में वकया िाता था िैसा वक आधुवनक समय में राज्य शब्द का प्रयोग वकया िाता है। पर प्राचीन समय में िनपदों का स्िरूप ितथमान राज्यों से अलग था। िैवदक युग में अनेक छोटे-2 राज्यों की सत्ता थी विन्हें ‘राष्र' नाम से भी पुकारा िाता था । इन्हें 'िनराज्य' भी कहा िाता था क्योंवक इनका मूल आधार िन होता था। इन िनपदों में शासन के वलए रािा का िरण होता था। उत्तर िैवदक युग में राज्यों ि िनपदों के आपसी संघर्थ के कारण महािनपदों का विकास आरम्भ हुआ। बौद्ध सावहत्य में 16 महािनपदों का िणथन वमलता है साथ ही अन्य छोटे िनपदों का भी। ये िनपद रािनैवतक दृवि से दो प्रकार के थे एक संघ ि दूसरे एकराि । नगर - ‘न गच्छतीवत नमः’ नग इि प्रसादा : सन्यत्र। विसमें ऊँचे-२ प्रसाद हो, तथा विनकी दीिारें, छत्त और मकान वशलाओं से वनवमथत हो, उन्हें नगर नाम से िाना िाता था। हमारे प्राचीन ग्रंथों में रािधानी शब्द का प्रयोग प्रायः रािा की प्रधान नगरी के रूप में हुआ है।