IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319 1775 Online 2320-7876

नाट्यान्वेषण : रंगमंच के विविध आयाम

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ज्योत्सना आर्य सोनी

Abstract

भारत की पहचान आदिकाल से एक ज्ञान संस्कृति के रूप में जानी जाती रही है। विश्व की सभी सभ्यताएं ज्ञान के क्षेत्र में भारत की सदैव ऋणी रही है।नाटकों के संबंध में उपलब्ध शास्त्रीय जानकारी को नाट्य शास्त्र के नाम से जाना जाता है। इस संबंध में सबसे प्राचीन ग्रंथ का नाम नाट्य शास्त्र है। जिसे भरत मुनि ने लिखा नाटक अभिनय संगीत की दृष्टि से यदि नाट्य शास्त्र पर विचार किया जाए तो नाट्य शास्त्र की आज भी प्रासंगिकता है इसमें केवल नाट्य रचना के नियमों का ही आकलन ही नहीं बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेषक इन तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। इसके 36 अध्यायों में भरत मुनि ने रंगमंच, अभिनेता, अभिनय, नृत्य, गीत, वाद्य, दर्शक, दस रूपक (नाट्यशास्त्र में भारतीय परंपरा में दस रूपों का विधान है) जिसे दस रूपक कहते हैं। और रस निष्पत्ति संबंधी सभी तथ्यों का विवेचन किया गया है।समग्र रूप से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है। “नाटक की सफलता केवल लेखन की प्रतिभा पर ही नहीं आधारित होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से होती है।“1

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