IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319 1775 Online 2320-7876

‘दलित जीवन की अस्मिता के अदम्य संघर्ष की दास्तां है : हक्वाई’

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डॉ गोपाल लाल मीना

Abstract

एस.आर.हरनोट की कहानी ‘हक्वाई’ की बात करें तो इस कहानी में पहाड़ी जीवन का एक दूसरा ही पक्ष प्रस्तुत होता है l जो पहाड़ी क्षेत्र का लोक मैदानी लोगों की नजर में बहुत ही सरल और कठोर जीवन चर्या जीवन जीने वाले पहाड़ी लोक का एक अलग ही पक्ष को उघाड़ते है l ‘हक्वाई’ कहानी पहाड़ी लोक में भी मानव से मानव का भेद और संसाधनों की लूट और भागीदारी में दलित उपेक्षा का नग्न यथार्थ का सत्यान्वेषण करती दिखती है l ‘हक्वाई’ कहानी का पात्र भागीराम भी दलित होने के कारण इसका शिकार होता है l वह किसी से भीख नहीं मांगता ‘हक्वाई’ पर जूते गांठता है, मेहनत करता है और मेहनत की खाता है, ‘हक्वाई’ उसके औजारों में एक प्रमुख है, जिससे कमाकर वह ‘हक़ की कमाई’ खाता है l वह उसको सबसे पहले पूजता है, उसके प्रति श्रद्धा है, वह उसके लिए उसके अस्तित्व का परिचायक है l उसकों पाने और उसके लिए उसके संघर्ष को सम्पूर्ण कहानी में बड़े कलात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है l कहने को तो ‘भागीराम’ का नाम ‘भाग्य’ शब्द के शब्दार्थ को ध्यान में रखकर रखा गया था, लेकिन भागीराम के जीवन में भाग्य कभी उसका साथी नही रहा l जो कि दलित जीवन का यथार्थ होता ही है l

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