Volume 13 | Issue 4
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अस्तित्व उपन्यास न केवल एक स्त्री के संघर्ष को चित्रित करती है,बल्कि उसकी आशाओं,महत्वाकांक्षाओं,प्रेम व कोमल भावनाओं,वास्तविकता और जिज्ञासा सहित उसकी दुनिया के बारे में अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती है। पितृसत्तात्मक संस्कृति में,एक स्त्री हमेशा जागरूक रहती है और अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए प्रयास करती है। इसके बाद,उसे अकेलेपन से जूझना पड़ता है। स्त्री अस्मिता के रुप में पात्र सरयू,प्रस्तुत उपन्यास में कल्पनाशील,सुसंस्कृत और आधुनिक है। प्रत्येक स्त्री का अपना संसार है,जिसमें भय और संशय निश्चित रूप से एक ऐसी शक्ति हैं जो उसे सामन्ती और उपभोक्तावादी संस्कृति से बचाने में मदद करती है। उसकी लड़ाई खोखले कुलीनतावादियों से नहीं है,बल्कि जटिलताओं,अनैतिक विचारधारा और पाखण्ड से भी जुड़ी है। भौतिकतावाद की दुनिया अन्धकारपूर्ण है। लेकिन उस पर प्रकाश का एक दृश्य है जिसे देखकर उपन्यास की पात्र स्वयं को छला हुआ महसूस करती है। फिर भी,वह पुरुष नियतवाद से टकराती है और स्वतंत्रता की ओर बढ़ने की कोशिश करती है और अपने संघर्षों के साथ नैतिकता के पथ पर अग्रसर रहती है।