Volume 13 | Issue 4
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साहित्य समाज का दर्पण है, चूँकि साहित्यकारों की उत्पत्ति और निर्माण समाज से ही होता है। समाज में घटित हो रही घटनाओं को साहित्यकार हु-ब-हु चित्रित करता हैं। हिन्दी साहित्य जगत् में कितने ही साहित्यकार, अपनी कलम के सिपाही बनकर सेवारत रहे हैं जो साहित्य के माध्यम से समाज में उठनेवाले प्रश्नों को वाणी प्रदान करते हैं। बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध के हिन्दी उपन्यासों में नारी सशक्तीकरण या नारी विषयक, नारी-विमर्श को प्रश्रय देनेवालें उपन्यासों का सृजन हुआ हैं। ऐसे ही नारी विषयक समस्याओं को लेकर कलम चलानेवाली नारीवादी सशक्त लेखिका मैत्रेयी पुष्पा हैं। इन्होंने अपने निजी अनुभवों और अपनी जीवनयात्रा में घटित हुई घटनाओं को साहित्य में उतारा हैं। मैत्रेयी पुष्पा ने नारी जीवन की नाना प्रकार की समस्याओं और मनोद्वन्द्वों को विश्लेषित करने का कठिन कार्य किया है। मैत्रेयी पुष्पा के समग्र साहित्य में नारी जीवन के दुरूह, यातना, पीड़ा और घुटन का चित्रण हुआ है। इस प्रकार मैत्रेयी नारी-संघर्ष के क्षेत्र में सशक्त लेखिका के रूप में साहित्य जगत् में दिखाई देती है।